Sunday, January 1, 2017

एक पल


ये कैसा एक पल हुआ
जो होके भी ना हुआ
एक एहसास रूहानी सा, सुहानी सा

ये हवा, ये फ़िज़ा
जो मुझे चूमते ही करवट बदल गयी
यूँ समुद्र में उठती हुई लहरे
जो मेरे करीब आते ही ठहर गयी
एक बरसात जो भीगा ना सकी
एक रात जो ना सकी

टहनी से निकला हुआ वो पत्ता
जो उड़ान भरते ही रेत पे गिरा
यूँ मिलो फैली रेत
जो हथेली में आते ही फ़िसल गयी

ये कैसा एक पल हुआ
जो होके भी ना हुआ

धडकने तेज़ हुई
और रूह काँप उठी
जो ये एहसास हुआ
प्राकृत तेरा राज़दार हुआ

यूँ फ़िज़ाओं का मुड़ना
यूँ ल़हेरो का थमना
ये तो तेरी फ़ितरत है जानम
जो बरसात तरसा के चली गयी
जो रात चिढ़ा के ढाल गयी
ये तो तेरी हरकत है जानम

तू आज फ़िर आके चला गया
मेरी आखों में आँसू और लाबो पे हसी देके चला गया
जो होके भी ना हुआ,
एसा एक पल देके चला गया |

No comments:

Post a Comment