ये बात अभी ख़तम हुई नही
ये रात तेरी सनम हुई नही
उन आखों में आज भी नमी थी
उनमे आज भी मेरी कमी थी
मैं अड़ी तो बड़ा अपनी बात पर
पर रुक ना सकी उस जज़्बात पर
वो एहसास आज भी बरकरार था
उस दबी हसी में आज भी इज़हार था
उस चश्मे के पीछे छुपाना तो था एहसास को
लेकिन फिर मिलने क्यूँ आए अपनी ख़ास को?
ये बात अभी ख़तम हुई नही
ये रात तेरी सनम हुई नही
ये रात तेरी सनम हुई नही
उन आखों में आज भी नमी थी
उनमे आज भी मेरी कमी थी
मैं अड़ी तो बड़ा अपनी बात पर
पर रुक ना सकी उस जज़्बात पर
वो एहसास आज भी बरकरार था
उस दबी हसी में आज भी इज़हार था
उस चश्मे के पीछे छुपाना तो था एहसास को
लेकिन फिर मिलने क्यूँ आए अपनी ख़ास को?
ये बात अभी ख़तम हुई नही
ये रात तेरी सनम हुई नही
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